जिले में बिना फार्मासिस्ट के चल रही मेडीकल दुकानें, कब होंगी इन पर कार्यवाही...?

 

मध्य प्रदेश फार्मासिस्ट के नियमों के तहत, फार्मेसी अधिनियम, 1948 की धारा 42 के अनुसार, केवल पंजीकृत फार्मासिस्ट ही दवाएं बेच सकते हैं। गैर-पंजीकृत व्यक्ति द्वारा दवाएं बेचने पर 3 महीने की कैद और रू.2 लाख तक का जुर्माना हो सकता है । बार-बार नियम उल्लंघन करने वाले फार्मासिस्ट का पंजीकरण भी रद्द किया जा सकता है।

Damoh जिले में बिना फार्मासिस्ट के मेडिकल स्टोर्स से लोगों को दवाइयां बेची जा रही है लेकिन जिला औषधि निरीक्षक द्वारा सरकार के आदेश और जिला प्रशासन के सख्त निर्देशों का जिले में कहीं पर भी कड़ाई से पालन होते दिखाई नहीं दे रहा हैं। जिला औषधि निरीक्षक अपने मनमाने तरीके से कमाई करने में लगे हैं ।

जिला मुख्यालय में विभागीय तौर पर कुछ मेडिकल स्टोर्स की जांच कर कार्यवाहियों से इतिश्री कर ली गई है। मुख्यालय छोड़कर ग्रामीण अंचलों की भी मेडिकल स्टोर्स की जांच करने अब तक विभागीय तौर पर जांच दल के नहीं पहुंचने की खबर है। ग्रामीणजनों से मिली जानकारी के अनुसार भले ही गांव-गांव में मेडिकल स्टोर्स तो संचालित की जा रही है लेकिन बगैर फार्मासिस्ट के ही दवाइयां बेधड़क बेची जा रही है।

कई दुकानों में फार्मासिस्ट नहीं, शहरी क्षेत्रों के प्रतिष्ठानों में भले ही फार्मासिस्ट की मौजूदगी में दवाइयां विक्रय की जा रही है लेकिन कई प्रतिष्ठानों में फार्मासिस्ट ही नहीं है। यक्ष सवाल यह है कि क्या अब भी पूर्व की तरह ही बगैर फार्मासिस्ट के ही दवाईयां विक्रय की जाएंगी या सरकार के आदेश का कड़ाई से पालन कराया जाएगा। जिला मुख्यालय में कुछेक मेडिकल स्टार्स की जांच कर भले ही कार्रवाई की गई हो, लेकिन जहां पर बगैर फार्मासिस्ट के दवाइयां बेची जा रही है सवाल उठता है कि आखिर जिम्मेदार प्रतिष्ठान की जांच करने में जिम्मेदार क्यों परहेज कर रहे हैं?

कहीं राजनीतिक दबाव तो नहीं ?
जांच करने में विभाग इतना परहेज क्यों कर रहा है? ग्रामीण क्षेत्रों में अब तक जांच दल क्यों नहीं पहुंचा? स्वास्थ्य विभाग की ओर से की गई कार्रवाई को स्थानीय लोग खानापूर्ति बता रहे हैं । यही नहीं, कई लोगों का कहना है कि मेडिकल दुकानों की जांच पर कहीं न कहीं राजनीतिक दबाव हावी है। यही वजह है कि कार्रवाई आंधी-अंधूरी रहती है और विभाग इस पूरे मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है। अगर जांच वास्तव में की जा रही है, तो फिर मीडिया को इससे दूर क्यों रखा जा रहा है? जांच की जानकारी सार्वजनिक क्यों नहीं की जाती? इससे पारदर्शिता भी बढ़ती और जनता में विभाग की छवि भी मजबूत होती।

किसी भी मेडिकल शाॅप में एक फार्मासिस्ट भी होना अति आवश्यक है, ताकि वह दवाइयों की देखरेख कर सके और एक्सपायरी बैच नंबर का उसे पर्याप्त जानकारी हो। यदि पढ़े-लिखे लोग मेडिकल शाॅप में बैठेगे तो लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं होगा । जिन मेडीकल स्टोर्स में फार्मासिस्ट नहीं है, उन्हें तो तुरंत कार्यवाही कर बंद करवा दी जानी चाहिए ।

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