दंतेवाड़ा जिले के बचेली आउटर इलाके में संचालित अंग्रेजी शराब दुकान में करोड़ों का घोटाला उजागर हुआ है। यह सिर्फ चार कर्मचारियों की चालबाजी नहीं, बल्कि आबकारी विभाग की भयावह लापरवाही, कमजोर निगरानी और टूटे हुए सिस्टम की खुली पोल है।
कैसे हुआ करोड़ों का खेल?
दुकान में तैनात सेल्समैनों ने सरकार द्वारा जारी असली QR कोड को हटाकर अपने निजी खातों के QR कोड चिपका दिए। ग्राहक को लगा वह सरकारी खाते में ऑनलाइन पेमेंट कर रहा है, जबकि पेमेंट सीधा सेल्समैनों के निजी खातों में जा रहा था।
महज 14 दिनों में करीब 1 करोड़ रुपए कर्मचारियों के खातों में ट्रांसफर हो गए।
उधर, विभागीय अधिकारी 14 दिन तक सोए रहे—सरकारी खाते में एक भी ऑनलाइन एंट्री नहीं आई, लेकिन न किसी ने सवाल किया, न किसी ने जांच की।
2 करोड़ की बिक्री, लेकिन सरकारी खाते में सिर्फ आधा पैसा!
दुकान की कुल बिक्री 14 दिनों में 2 करोड़ से अधिक बताई गई है।
लेकिन ऑनलाइन पेमेंट के नाम पर सरकारी खाते में लगभग शून्य एंट्री!
यह अरसे से चले आ रहे भ्रष्ट सिस्टम का नमूना है, जहाँ अधिकारी कागजी दावा तो मजबूत करते हैं, लेकिन जमीनी निगरानी शून्य है।
लापरवाही का वह स्तर, जिसकी मिसाल नहीं
14 दिन तक ऑनलाइन ट्रांजेक्शन बंद!
विभागीय मॉनिटरिंग सिस्टम फेल!
अधिकारियों को भनक तक नहीं लगी!
दुकान का QR कोड बदल जाना, किसी को दिखा तक नहीं!
यह स्पष्ट करता है कि आबकारी विभाग की निगरानी सिर्फ कागजों में होती है।
अगर किसी ने ऑफिशियल खाते की जांच की होती तो यह घोटाला पहले ही पकड़ लिया जाता।
रायपुर से टीम पहुंची – चार पर FIR की तैयारी
घोटाले की खबर मिलते ही रायपुर से विशेष जांच टीम बचेली पहुंची।
जांच में चार कर्मचारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है।
टीम ने आते ही पुराने कर्मचारियों को हटाया और नए सेल्समैन तैनात किए। चारों आरोपियों पर FIR दर्ज करने की तैयारी है।
असल घोटाला 1 करोड़ से भी अधिक?
अधिकारियों का मानना है कि यह सिर्फ शुरुआती आंकड़ा है।
संभावना जताई जा रही है कि—
घोटाला इससे पहले भी कई बार दोहराया गया हो,
QR कोड बदलने की यह पहली घटना नहीं,
राशि 1 करोड़ से कहीं अधिक हो सकती है ?
पूरी कहानी वही बताएगी, जब सरकारी रिकॉर्ड और कर्मचारियों के बैंक लेन-देन की पूरी जांच होगी।
आबकारी विभाग की जवाबदेही कहाँ है?
एक सरकारी दुकान में QR कोड बदल जाना छोटी बात नहीं है।
यह सिस्टम की बीमारी है—
निरीक्षण नहीं,
मॉनिटरिंग नहीं,
डेटा ट्रैकिंग नहीं,
और जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया भी कमजोर।
इस लापरवाही ने साबित कर दिया है कि विभागीय अधिकारी सिर्फ कुर्सियों पर बैठे हैं, निगरानी के नाम पर घोर उदासीनता बरत रहे हैं।
अगर विभाग सच में जागा होता, तो 14 दिन तक सरकारी खाते में एक भी ऑनलाइन एंट्री गायब रहने पर पूरा सिस्टम अलर्ट हो जाता।
निष्कर्ष – यह सिर्फ घोटाला नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की असफलता है
बचेली की अंग्रेजी शराब दुकान में हुआ QR कोड घोटाला सिर्फ चार कर्मचारियों की करतूत नहीं, बल्कि आबकारी विभाग की लापरवाही, भ्रष्टाचार और सुस्त मॉनिटरिंग सिस्टम की जीती-जागती मिसाल है।
जांच आगे बढ़ने पर कई बड़े नाम सामने आने की संभावना है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि घोटाले का शिकार बनी सरकार या सिस्टम, जवाबदेही किसकी तय करती है—
चार कर्मचारी या पूरा विभाग
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