सुरक्षा के नाम पर बड़ा सवाल — अस्पतालों में नवजातों की सुरक्षा व्यवस्था कितनी मजबूत ?
रायपुर। मेकाहारा अस्पताल में 10 महीने पहले हुए चर्चित नवजात अपहरण मामले में कोर्ट ने शुक्रवार को अहम फैसला सुनाया। अदालत ने आरोपित रानी साहू और उसकी बेटी पायल साहू को दोषी ठहराते हुए 10-10 साल की कठोर सजा सुनाई है। जांच में खुलासा हुआ कि दोनों महिला नवजात को बिलासपुर में 50 हजार रुपए में बेचने की योजना बना चुकी थीं।
इस मामले में शामिल बताए जा रहे आरोपी युवक को सबूतों के अभाव में कोर्ट ने बरी कर दिया, जिससे एक बार फिर जांच प्रक्रिया को लेकर भी सवाल उठे हैं।
घटना 4 जनवरी की है। अस्पताल में भर्ती नीता रात्रे अपनी नवजात बच्ची के साथ वार्ड में थीं। तभी दो महिलाओं ने मरीजों और परिजनों से हमदर्दी जताते हुए बातचीत शुरू की। आरोप के मुताबिक, उन्होंने नीता रात्रे और उनकी सास को यह कहकर भरोसे में लिया कि उनकी बहू की बच्ची की मौत हो गई है।
कुछ ही घंटों की नजदीकी और विश्वास का फायदा उठाते हुए दोनों महिलाएँ लंच टाइम में नवजात को चोरी-छिपे उठा ले गईं। मामले की जानकारी मिलते ही क्राइम ब्रांच और मौदहापारा थाना पुलिस अलर्ट पर आ गए।
जांच के दौरान पुलिस को खबर मिली कि दो संदिग्ध महिलाएँ लोकल ट्रेन से बिलासपुर की ओर जा रही हैं। ट्रेन छूटने के तुरंत बाद पुलिस ने चेन खींचकर उसे रोका और दोनों को नवजात बच्ची के साथ गिरफ्तार कर लिया।
अदालत ने माना कि नवजात की बिक्री की साजिश स्पष्ट है, साथ ही आरोपी महिलाओं का पुराना आपराधिक रिकॉर्ड भी सामने आया। समग्र साक्ष्यों के आधार पर न्यायालय ने मां-बेटी दोनों को कठोर सजा सुनाई।
अस्पतालों की सुरक्षा पर फिर उठे सवाल
इस मामले ने एक बार फिर बड़े सरकारी अस्पतालों की सुरक्षा खामियों को उजागर कर दिया है। वार्ड के अंदर अज्ञात लोगों का आसानी से घुस जाना, मरीजों से नजदीकी बढ़ाना और नवजात को बिना किसी रोक-टोक के लेकर निकल जाना—यह गंभीर चूक है।
लोगों का कहना है कि अस्पतालों में सीसीटीवी, सुरक्षा गार्ड, एंट्री पास सिस्टम और नवजात वार्ड की निगरानी को और मजबूत करने की जरूरत है, ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
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